Publish Date: 2024-08-01 14:19:35
‘‘सर, मुझे काम चाहिए, भीख नहीं। काम अगर कल से करने आना है तो कल ही ये पैसे दीजिएगा, इतने दिन भूखा रहा तो एक दिन और रह लेने से मर नहीं जाऊंगा।’’ युवक कहकर मुड़ा और वापस चला गया। वह उसे तब तक जाते देखता रहा, जब तक कि वह नजरों से ओझल नहीं हो गया…। किसी कहानी में पढ़ा गया यह अंश बहुत दिनों तक मन में गूंजता रहा था। लगा कि मानवीय गरिमा ऐसी ही होनी चाहिए…जान भले ही जाए लेकिन आत्मसम्मान नहीं जाना चाहिए।यह सच है कि काम मिलना आसान नहीं होता (बढ़ती बेरोजगारी इसका ज्वलंत उदाहरण है)। काम देने वाले कई बार शोषण भी कम नहीं करते और वहीं से होती है अन्याय की शुरुआत। प्रतिक्रिया में पैदा होता है आक्रोश और इससे टकराव का जो सिलसिला पैदा होता है, उसका कहीं अंत नहीं होता। इसीलिए जब सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना शुरू की तो करोड़ों लोगों को गरिमा के साथ जीने का वह अधिकार वास्तव में मिला, जो उन्हें संविधान देता है। लेकिन फिर पता नहीं क्या हुआ कि सरकारों ने धीरे-धीरे चीजें फ्री में बांटनी शुरू कर दीं! तो क्या सरकारें इतना कमाती हैं कि लोगों का मुफ्त में पेट भर सकें? पर सरकारों को पैसा मिलता कहां से है? करदाता चाहे कितने भी अमीर हों, क्या कभी चाहेंगे कि उनके पैसे को ‘मुफ्त’ में खर्च किया जाए? सच तो यह है कि जिसे मुफ्त की चीजें मिलती हैं, वह भी मुफ्तखोरी की बजाय यही चाहेगा कि उसे काम मिले। हां, जो दिव्यांग हों या उम्रदराज, उनकी बात अलग है, उनका सहारा बनना सरकार का फर्ज है। हालांकि सच यह भी है कि तकनीकी विकास के इस युग में केवल शारीरिक परिश्रम से काम नहीं चल सकता, लेकिन मुफ्त में चीजें बांटने के बजाय क्या तकनीकी प्रशिक्षण के साथ इसे नहीं दिया जा सकता? खुशी की बात है कि वर्तमान सरकार ने कौशल विकास की दिशा में काम शुरू किया है और हालिया बजट में कौशल प्रशिक्षण के साथ युवाओं को हर माह मानधन भी देने का प्रावधान है। दरअसल कुछ करने के बाद पैसा मिले तो वह अपनी मेहनत की कमाई लगती है और फ्री की कमाई तो बाप की भी मिल जाए तो बेटा बेदर्दी से ही उड़ाता है! पुरानी कहानी है कि किसी राजा की लाइलाज हो चली बीमारी को दूर करने के लिए एक वैद्य ने उसे मेहनत की कमाई खाने को कहा था और परिश्रम करने से सचमुच ही उसकी बीमारी दूर हो गई थी।दरअसल मेहनत और कमाई का संबंध जब टूटने लगता है तो भ्रष्टाचार पनपने लगता है। धीरे-धीरे यह आदत बन जाता है और सबकुछ जैसे यंत्रवत चलने लगता है। जब कभी दबाव अधिक बढ़ जाने से प्रेशर कुकर के ढक्कन की तरह फूटता है तो पूजा खेड़कर मामला, पुणे में नाबालिग कार चालक द्वारा दो इंजीनियरों को कुचलने, सैकड़ों फुट लम्बा होर्डिंग गिरने से 17 लोगों के मरने और छात्रों के तलघर में डूबने जैसी घटनाएं सामने आती हैं, जिनमें संगठित तरीके से बहुसंख्य लोग भ्रष्टाचार से जुड़े पाए आते हैं; तब पता चलता है कि भांग तो पूरे कुएं में ही पड़ी है! ऐसी घटनाएं थोड़ी देर के लिए झकझोरती हैं, हड़बड़ा कर हम जागते हैं, लेकिन नींद इतनी गहरी है कि जल्दी ही फिर सो जाते हैं!लेखक:हेमधर शर्मा
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